श्री राम जय राम जय जय राम मंत्र लाभ
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श्री राम नाम महिमा
भगवान श्रीराम का मंत्र
मंत्र– ‘श्री राम जय राम जय जय राम’
जीवन को संतुलित रखने के लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय ये सात शब्दों वाला तारक मंत्र है ‘श्री राम जय राम जय जय राम‘
भगवान श्रीराम के इस चमत्कारिक मंत्र में श्री, राम और जय इन तीन शब्दों को एक खास क्रम में दोहराया गया है.
इस मंत्र में:
‘श्री’ का मतलब है लक्ष्मी स्वरुपा सीता या शक्ति
‘राम’ शब्द में ‘रा’ का संबंध अग्नि से है जो संपूर्ण दुष्कर्मों का दाह कर देती है
‘म’ शब्द जल तत्व का प्रतीक है जिसे जीवन के समान माना जाता है
‘जय’ का अर्थ है विजय पाना
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“श्री राम जय राम जय जय राम” मन्त्र की व्याख्या:
इस मन्त्र में—
‘श्रीराम’—यह भगवान राम के प्रति पुकार है ।
‘जय राम’—यह उनकी स्तुति है
‘जय जय राम’—यह उनके प्रति पूर्ण समर्पण है ।
मन्त्र का जप करते समय मन में यह भाव रहे—‘भगवान श्रीराम और सीताजी दोनों मिलकर पूर्ण ब्रह्म हैं। हे राम ! मैं आपकी स्तुति करता हूँ और आपके शरण हूँ।’
संसार का मूल कारण सत्व, रज और तम—ये त्रिगुण हैं । ये तीनों ही भव–बंधन के कारण हैं । इन तीनों पर विजय पाने और संसार में सब कुछ ‘राम’ मानने की शिक्षा देने के लिए इस मन्त्र में तीन बार ‘राम’ और तीन ही बार ‘जय’ शब्द का प्रयोग हुआ है
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तारक मंत्र का सार :
तारक मंत्र ‘श्री‘ से प्रारंभ होता है।
‘श्री‘ को सीता अथवा शक्ति का प्रतीक माना गया है।
राम शब्द ‘रा‘ अर्थात् र–कार और ‘म‘ अर्थात् म-कार से मिल कर बना है।
‘रा‘ अग्नि स्वरूप है। यह हमारे दुष्कर्मों का दाह करता है।
‘म‘ जल तत्व का द्योतक है। जल आत्मा की जीवात्मा पर विजय का कारक है।
“रं” मंत्र मनन से मणिपुर चक्र में पूर्व से ही निरन्तर चले आ रहे असुंतलन से उत्पन्न पूर्व में हमारा स्वभाव बन चुकी हमारी अहं युक्त – “मैं” व कर्ता भाव की भावना समाप्त होने लग जाती है।
इस प्रकार पूरे तारक मंत्र – ‘श्री राम, जय राम, जय जय राम‘ का सार निकलता है – शक्ति से परमात्मा पर विजय।
योग शास्त्र में ‘रा‘ वर्ण को सौर ऊर्जा का कारक माना गया है। यह हमारी रीढ़–रज्जू के दाईं ओर स्थित पिंगला नाड़ी में स्थित है। यहां से यह शरीर में पौरुष ऊर्जा का संचार करता है।
‘म‘ वर्ण को चंद्र ऊर्जा कारक अर्थात स्त्री लिंग माना गया है। यह रीढ़–रज्जू के बाईं ओर स्थित इड़ा नाड़ी में प्रवाहित होता है।
इसीलिए कहा गया है कि श्वास और निश्वास में निरंतर र–कार ‘रा‘ और म–कार ‘म‘ का उच्चारण करते रहने से दोनों नाड़ियों में प्रवाहित ऊर्जा में सामंजस्य बना रहता है।
अध्यात्म में यह माना गया है कि जब व्यक्ति ‘रा‘ शब्द का उच्चारण करता है तो इसके साथ–साथ उसके आंतरिक पाप बाहर फेंक दिए जाते हैं। इससे अंतःकरण निष्पाप हो जाता है।
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तारक मंत्र :
श्री राम जय राम जय जय राम एक तारक मंत्र है। यह मंत्र ही जीव को इस संसार के भवसागर से अर्थात जीवन मरण के चक्र से पार लगाता है ।
मंत्र जप के लिए किसी विशेष नियम पालन ,आयु, स्थान, परिस्थिति, देश, काल, पात्र ,जात–पात आदि किसी भी बाहरी आडंबर का बंधन नहीं है। इसका जाप कोई भी, कहीं भी, कभी भी, किसी भी क्षण, किसी भी स्थान पर कर सकता है । अर्थात मनुष्य हर समय इस मंत्र का मानसिक जप कर सकता है ।
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भगवान श्रीराम का विजय मंत्र- ‘श्री राम जय राम जय जय राम’
सत् गुण के रूप में (निष्काम भाव से) इस मन्त्र के जप से साधक अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करता है ।
रजोगुण के रूप में (कामनापूर्ति के लिए) इस महामन्त्र के जप से मनुष्य दरिद्रता, दु:खों और सभी आपत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है ।
तमोगुण के रूप में (शत्रु बाधा, मुकदमें में जीत आदि के लिए) इस मन्त्र का जप साधक को संसार में विजयी बनाता है और अपने विजय–मन्त्र नाम को सार्थक करता है ।
सच्चे साधक को यह विजय–मन्त्र परब्रह्म परमात्मा का दर्शन कराता है । इसी विजय–मन्त्र के कारण बजरंगबली हनुमान को श्रीराम का सांनिध्य और कृपा मिली । समर्थ गुरु रामदासजी ने इस मन्त्र का तेरह करोड़ जप किया और भगवान श्रीराम ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिए थे ।
इस मन्त्र में तेरह (13) अक्षर हैं और तेरह लाख जप का एक पुरश्चरण माना गया है । इस मन्त्र का जप कर सकते हैं और कीर्तन के रूप में जोर से गा भी सकते हैं ।
इस मन्त्र को सच्ची श्रद्धा से जीवन में उतारने पर यह साधक के जीवन का सहारा, रक्षक और सच्चा पथ–प्रदर्शक बन जाता है ।
भगवान श्रीराम के इस मंत्र में बड़ी से बड़ी दुविधा और परेशानियों से बाहर निकालने की क्षमता है ।
श्रीराम के इस मंत्र का जाप करने वाले मनुष्य के जीवन की समस्त बाधाओं का नाश होता है और अंत में वो उनपर विजय प्राप्त कर ही लेता है ।
ये है भगवान श्रीराम का मंत्र – जो व्यक्ति निरंतर इस मंत्र का जाप करता है वो अपने जीवन में अचानक आनेवाली परेशानियों से बच जाता है और हर क्षेत्र में उसकी विजय निश्चित होती है ।
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श्री राम, जय राम, जय-जय राम- धन दायक मंत्र
भगवन शंकर द्वारा प्रदत्त महामंत्र, जिसे उन्होंने हनुमान जी को दिया श्री राम, जय राम, जय-जय राम का जाप करने से घर में लक्ष्मी का आती है।
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राम रसायन-
यह राम रसायन भी है जिसे पीते ही शरीर स्वस्थ होता है, असाध्य रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है। इसी राम रसायन से हनुमान जी अमर हो गए।
विभीषण और सुग्रीव राजा बने। अतः यह मंत्र राजा बनने का है।
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तारक मंत्र जप का प्रभाव :
शान्ति पाने का यह कितना सरल साधन है। फिर भी न जाने क्यों व्यक्ति इधर–उधर भटकता फिरता है? व्यक्ति के शरीर में 72,000 नाड़ी मानी गयी हैं। इनमें से 108 नाड़ियों का अस्तित्व हृदय में माना गया है। इसलिए मंत्र जप संखया 108 मानी गयी है। अर्थात एक माला में 108 जप संख्या के कई कारण हैं। संख्या से जप करना महत्वपूर्ण है। सुर , ताल तथा नाद और प्राणायाम से जप को और भी अधिक शक्तिशाली बनाया जाता है। मंत्र जाप में तीन पादों की प्रधानता है। पहले आता है मौखिक जाप। जैसे ही हमारा मन मंत्र के सार को समझने लगता है हम जाप की द्वितीय स्थिति अर्थात् उपांशु में पहुंच जाते हैं। इस स्थिति में मंत्र की फुसफुसाहट भी नहीं सुनी जा सकती। तृतीय स्थिति में मंत्र जप केवल मानसिक रह जाता है। यहॉ मंत्रोच्चार केवल मानसिक रुप से चलता है। इसमें दृष्टि भी खुली रहती है और मानसिक संलग्नता के साथ–साथ व्यक्ति अपने दैनिक कर्मों में भी लीन रहता है। यह अवस्था मंत्र के एक करोड़ जाप कर लेने मात्र से आ जाती है। यहीं से शाम्भवी मुद्रा सिद्ध हो जाती है और साधक की परमहंस की अवस्था पहुंच जाती है।
एक लाख तारक मंत्र जप के पश्चात मनुष्य या साधक को अद्भुत अनुभूति होने लगती है। उसके जीवन में दुर्भाग्य का अस्तित्व ही नहीं रह जाता। यदि ऐसा व्यक्ति मंत्र जप के बाद किसी बीमार व्यक्ति की भृकुटी में सुमेरु छुआ दे, तो उसे आशातीत लाभ होने लगेगा। परन्तु इस प्रकार के प्रयोग के बाद माला को गंगा जल से शुद्ध करके फिर प्रयोग करना चाहिए। तारक मंत्र के लिए सर्वश्रेष्ठ माला तुलसी की मानी जाती है। माला के 108 मनके हमारे हृदय में स्थित 108 नाड़ियों के प्रतीक स्वरुप हैं। माला का 109 वॉ मनका सुमेरु कहलाता है। व्यक्ति को एक बार में 108 जाप पूरे करने चाहिए। इसके बाद सुमेरु से माला पलटकर पुनः जाप आरम्भ करना चाहिए। किसी भी स्थिति में माला का सुमेरु लांघना नहीं चाहिए। माला को अंगूठे और अनामिका से दबाकर रखना चाहिए और मध्यमा ऊँगली से एक मंत्र जपकर एक दाना हथेली के अन्दर खींच लेना चाहिए। तर्जनी उॅगली से माला का छूना वर्जित माना गया है। मानसिक रुप से पवित्र होने के बाद किसी भी सरल मुद्रा में बैठें जिससे कि वक्ष, गर्दन और सिर एक सीधी रेखा में रहे। मंत्र जप पूरे करने के बाद अन्त में माला का सुमेरु माथे से छुआकर माला को किसी पवित्र स्थान में रख देना चाहिए। मंत्र जप में कर–माला का प्रयोग भी किया जाता है। जिनके पास कोई माला नहीं है वह कर–माला से विधि पूर्वक जप करें। कर–माला से मंत्र जप करने से भी माला के बराबर जप का फल मिलता है।
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राम महामंत्र :
राम नाम को जीवन का महामंत्र माना गया है। राम सर्वमय व सर्वमुक्त हैं। राम सबकी चेतना का सजीव नाम हैं।
अस समर्थ रघुनायकहिं, भजत जीव ते धन्य॥
प्रत्येक राम भक्त के लिए राम उसके हृदय में वास कर सुख सौभाग्य और सांत्वना देने वाले हैं।
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“राम” शिव का महामंत्र:
राम सब में बड़े हैं तथा राम में शिव और शिव में राम विद्यमान हैं। श्री राम को शिव का महामंत्र माना गया है और राम सर्वमुक्त हैं। राम सबकी चेतना का सजीव नाम है। श्री राम अपने भक्त को उसके हृदय में वास करके सुख सौभाग्य प्रदान करते हैं।
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है कि प्रभु के जितने भी नाम प्रचलित हैं उनमें सर्वाधिक श्रीफल देने वाला नाम राम का ही है। राम नाम सबसे सरल और सुरक्षित है और इसके जप से लक्ष्य की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है।
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राम नाम का अर्थ:
रमन्ते सर्वभूतेषु स्थावरेषु चरेषु च।
अंतराम स्वरूपेण यश्च रामेति कथ्यते।।
जो सब जीवो में चल और अचल स्वरुप में बिराजते है उन्हें ही राम कहते है।
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राम नाम का अर्थ ( रामायण अनुसार ) :
बंदउ नाम राम रघुबर को । हेतु कृसानु भानु हिमकर को ।।
बिधि हरि हरमय बेद प्राण सो ।अगुन अनूपम गुन निधन सो ।।
मैं रघुनाथ के नाम ‘राम’ की वंदना करता हूँ, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चंद्रमा) का हेतु अर्थात् ‘र’ ‘आ’ और ‘म’ रूप से बीज है। वह ‘राम’ नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है। वह वेदों का प्राण है, निर्गुण, उपमा रहित और गुणों का भंडार है।
राम सब में हैं। सब राम में हैं । राम सबके हैं । सब राम के हैं ।
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नारद पुराण के अनुसार राम नाम का अर्थ:
र – कार बीज मंत्र अग्निनारायण का है जिसका काम शुभाशुभ कर्म को भस्म कर देना है।
आ – कार बीज मंत्र सूर्यनारायण का है जिसका काम मोहान्धकार का विनाश करना है |
म – कार बीज मंत्र चंद्रनारायण का है जिसका काम त्रिविध ताप (दैहिक, दैविक और भौतिक, तीनों ताप या कष्ट) को संहार करने का है | इस तरह से नारदजी ने राम का अर्थ बताया है।
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श्रीराम नाम के तीनो पदों ” र,अ,म “ – में सच्चिदानंद का अभिप्राय स्पष्ट झलकता है।
श्रीराम नाम के तीनो पदों में सत चित आनंद तीनो समाहित हैं अर्थात
“र”कार चित का
“अ”कार सत का और
“म”कार आनंद का वाचक है
इस प्रकार ‘राम’ नाम सच्चिदानन्दमय है ।
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राम नाम के तीनो अक्षर (र,अ,म) क्रमशः इन तीनो के बीज अक्षर हैं ।
‘र’ अग्निबीज है जैसे अग्नि शुभाशुभ कर्मों को जलाकर समाप्त कर देता है, वस्तु के गुण तथा दोषों को जला के शुद्ध कर देता है वैसे ही “र” के उच्चारण से व्यक्ति के शुभाशुभ कर्म नष्ट होते हैं जिसका फल स्वर्ग नरक का अभाव है साथ ही ये हमारे मन के मल–विषयवासनाओं का नाश कर देता है जिससे स्वस्वरूप(जीव का स्वरुप आत्मा है ) का आभास होने लगता है यहाँ कार्य से कारण में विशेषता दिखायी है । अग्नि से जो कार्य नहीं हो सकता वह उसके बीज से हो जाता है ।
‘अ’ भानुबीज है वेदशास्त्रों का प्रकाशक है जैसे सूर्य अन्धकार को दूर करता है वैसे ही “अ” से मोह, दंभ आदि जो अविद्धतम है, उसका नाश होता है व ज्ञान का प्रकाश होता है ।
‘म’ चंद्रबीज है,अमृत से परिपूर्ण है । जैसे चन्द्रमा शरदातप (शरद ऋतु का ताप) हरता है, शीतलता देता है वैसे ही ‘म’ से भक्ति उत्पन्न होती है त्रिताप दूर होते हैं ।
इस तरह से ‘र’ ‘अ’ और ‘म’ क्रमशः ज्ञान वैराग्य व भक्ति के उत्पादक हैं ।
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“रमन्ति इति राम” जो रोम रोम में बसते है वो राम है।
ॐ और राम परमात्मा के परिचायक शब्द है।
ॐ (ओ अहम) अर्थात् वो परमात्मा जो हममें है।
राम – जिसमें रमा जाता है।
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रमन्ति योगिने यस्मिन स: राम अर्थात् योगी लोग जिसमें रमण करते है– वह एक परमात्मा।
ॐ और राम ही जपते–जपते आसानी से श्वास में ढल जाते है।
पहले नाम जिह्वा से जपा जाता है लेकिन अवस्था उन्नत होने पर आगे चलकर श्वास से जपा जाता है, उससे उन्नत अवस्था होने पर जपना भी नहीं पड़ता बल्कि जप अपने आप चलता है – ‘जपै न जपावै अपने से आवै।’
आज तक होने वाले सभी संत–महापुरुषों ने इस मानव तन को दुर्लभ कहा है इसलिए इसे केवल संसार एवं भोगों में ही नष्ट न करें वरन आत्म चिंतन (परमात्म चिन्तन) में भी लगायें। भगवान् का भजन केवल मनुष्य ही कर सकता है, अन्य जीवों को भजन का अधिकार नहीं है क्योंकि वे भोग योनि है। 84 लाख योनियों के पश्चात मानव तन मिलता है इसलिए इसे संसार के भोगों में व्यर्थ नष्ट न करें, परमात्मा के सुमिरन–भजन के लिए भी कुछ समय अवश्य निकालें।
श्वास–श्वास पर नाम जप, वृथा श्वास मत खोय।
न जाने यहि श्वास का आवन होय न होय।।
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राम’ नाम का रहस्य
राम का अर्थ है ‘प्रकाश’। किरण एवं आभा (कांति) जैसे शब्दों के मूल में राम है।
‘रा’ का अर्थ है आभा (कांति) और ‘म’ का अर्थ है मैं, मेरा और मैं स्वयं। अर्थात मेरे भीतर प्रकाश, मेरे ह्रदय में प्रकाश।
“रमंति इति रामः” जो रोम–रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है। वही राम है।
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राम नाम ही परमब्रह्म है:-
कबीरदासजी ने कहा है–
आत्मा और राम एक है–
आतम राम अवर नहिं दूजा।
राम नाम कबीर का बीज मंत्र है। रामनाम को उन्होंने “अजपा जप” (जिसका उच्चारण नही किया जाता, अपितु जो स्वास और प्रतिस्वास के गमन और आगमन से सम्पादित किया जाता है।) कहा है। यह एक चिकित्सा विज्ञान आधारित सत्य है कि हम 24 घंटों में लगभग 21,600 श्वास भीतर लेते हैं और 21,600 उच्छावास बाहर फेंकते हैं।
इसका संकेत कबीरदासजी ने इस उक्ति में किया है–
“सहस्र इक्कीस छह सै धागा, निहचल नाकै पोवै।”
अर्थात मनुष्य 21,600 धागे नाक के सूक्ष्म द्वार में पिरोता रहता है। अर्थात प्रत्येक श्वास–प्रश्वास में वह राम का स्मरण करता रहता है।
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राम नाम का पहला अर्थ है–
‘रमन्ते योगिन: यस्मिन् राम:।’ यानी ‘राम’ ही मात्र एक ऐसे विषय हैं, जो योगियों की आध्यात्मिक–मानसिक भूख हैं, भोजन हैं, आनन्द और प्रसन्नता के स्त्रोत हैं।
राम का दूसरा अर्थ है:- ‘रति महीधर: राम:।’
‘रति’ का प्रथम अक्षर ‘र’ है और ‘महीधर’ का प्रथम अक्षर ‘म’, दोनों मिलकर होते हैं राम। ‘रति महीधर:’ सम्पूर्ण विश्व की सर्वश्रेष्ठ ज्योतित सत्ता है, जिनसे सभी ज्योतित सत्ताएं ज्योति प्राप्त करती हैं।
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राम से बड़ा राम का नाम–
भगवान के ‘नाम’ का महत्व भगवान से भी अधिक होता है । भगवान को भी अपने ‘नाम’ के आगे झुकना पड़ता है । यही कारण है कि भक्त ‘नाम’ जप के द्वारा भगवान को वश में कर लेते हैं ।
गोस्वामी तुलसीदासजी का कहना है—‘राम–नाम’ राम से भी बड़ा है । राम ने तो केवल अहिल्या को तारा, किन्तु राम–नाम के जप ने करोड़ों दुर्जनों की बुद्धि सुधार दी । समुद्र पर सेतु बनाने के लिए राम को भालू–वानर इकट्ठे करने पड़े, बहुत परिश्रम करना पड़ा परन्तु राम–नाम से अपार भवसिन्धु ही सूख जाता है ।
कहेउँ नाम बड़ ब्रह्म राम तें ।
राम एक तापस तिय तारी ।
नाम कोटि खल कुमति सुधारी ।।
राम भालु कपि कटकु बटोरा।
सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा ।।
नाम लेत भव सिंधु सुखाहीं ।
करहु विचार सुजन मन माहीं ।।
जब हनुमानजी संकट में थे, तब सबसे पहले ‘श्री राम जय राम जय जय राम’ मन्त्र नारद जी ने हनुमानजी को दिया था । इसलिए संकट–नाश के लिए इस मन्त्र का जप मनुष्य को अवश्य करना चाहिए । यह मन्त्र ‘मन्त्रराज’ भी कहलाता है क्योंकि—यह उच्चारण करने में बहुत सरल है ।
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राम नाम जप प्रभाव :
मानसिक जप श्रेष्ठ माना गया है परन्तु सबसे श्रेष्ठ जप माना गया है कि श्वास– निश्वास में निरन्तर राम नाम निकलता रहे। जहाँ तक सम्भव हो हर घड़ी, हर क्षण राम का नाम अन्तर्मन में रटा जाता रहे जिससे कि रोम–रोम में राम नाम समा जाए। ठीक ऐसे ही जैसे कि ‘मारुति अर्थात हनुमान जी के रोम रोम में राम नाम बसा है।‘ जप के अतिरिक्त राम मंत्र को लिखकर भी आत्मशुद्धि की जा सकती है। एक लाख मंत्र एक निश्चित अवधि में लिखकर यदि पूरे कर लिए जाएं तो अन्तर्मन उज्जवल बनता है। व्यक्ति यदि चार करोड़ मंत्र मात्र राम लिखकर अथवा जपकर पूर्णकर लें तो उसके ज्ञान–चक्षु खुल जाते हैं। वह निश्चित ही भवसागर को पार कर जाता है। परन्तु यह कार्य सरल नहीं है क्योंकि मन बहुत चंचल है एक जगह स्थिर ही नहीं होता। यदि प्रत्येक सांस में राम नाम लिया जाये तो 4 करोड़ की संखया लगभग 5 वर्ष में पूरी की जा सकती है। यह तभी संभव है जब प्रत्येक सांस में अन्य कोई विचार न लाए। स्वयं सोचें कि यह कितना कठिन कार्य है। इसके लिए मन का वश में होना अत्यंत आवश्यक है। इसीलिए पुण्यफल एक-दो जन्मों में नहीं मिल पाता। इसके लिए जन्म–जन्मान्तर का समय चाहिए। जितनी कम आयु से नाम का जप प्रारम्भ कर दिया जाए उतना ही अच्छा है क्योंकि एक अवस्था के बाद अभ्यास की कमी के कारण शरीर भी कार्य करने से आनाकानी करने लगता है।
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राम नाम का महत्व :
हमारा जीवन सौभाग्य और दुर्भाग्य की अनुभूतियों से भरा हुआ है। कभी हमें सौभाग्य का अनुभव होता है और कभी दुर्भाग्य का। सौभाग्य हमें निश्चित रुप से अच्छा लगता है परन्तु दुर्भाग्य से दुखी होना किसी को अच्छा नहीं लगता। सब सौभाग्य की ही अपेक्षा रखते हैं। दुर्भाग्य दूर करने के लिए व्यक्ति यथा शक्ति पुरुषार्थ करता है। प्रत्येक व्यक्ति के कर्म करने के ढंग अलग–अलग हो सकते हैं। कुछ लोग प्रभु का सहारा लेते हैं – उसकी पूजा–अर्चना कर उसकी कृपा पाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। कुछ लोग मादक द्रव्यों का प्रयोग करने लगते हैं। कुछ लोग अपने–अपने क्रिया–कलापों से मुक्ति पा जाते हैं और अन्य दुःखमय जीवन व्यतीत करते हुए मानसिक कष्ट के शिकार हो जाते हैं।
दुर्भाग्य की मात्रा और दुर्भाग्य की अवधि इस बात पर निर्भर करती है कि हम कितनी गहनता से दुःख का अनुभव करते हैं। एक व्यक्ति के लिए दुर्भाग्य पहाड़ के समान होता है। परंतु किसी अन्य के लिए वह एक साधारण बात हो सकती है। दुख अथवा दुर्भाग्य वास्तव में सौभाग्य के कम हो जाने का प्रतीक है। इसी प्रकार सुख अथवा सौभाग्य का दुःख का कम हो जाने का प्रतीक है। यह नाव के दो चप्पुओं के समान है। यदि एक का भी संतुलन बिगड़ा तो जीवन की नाव डगमगा जाएगी। इसीलिए वक़्त वक़्त पर सौभाग्य और दुर्भाग्य हमारे जीवन में आते रहते हैं ।
जीव का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है कि वो राम नाम को भूल गया है। आज मनुष्य जीवन में राम नाम को छोड़ कर अन्य न जाने कितने साधनो में लगा है। राम में ही आराम है । राम नाम से दूर जा कर जीव ने अपना जीवन दूभर और कठिनता भरा कर लिया है । मनुष्य ने जितना अधिक राम नाम को खोया है, उतनी ही विषमता उसके जीवन में बढ़ी है, उतना ही अधिक त्रास और कष्ट उसे मिला है। हमारे ऋषि–मुनियों ने राम नाम को एक सार्थक नाम के रूप में पहचाना तथा परखा और एक धरोहर, संस्कृति और संस्कार के रूप में मनुष्य सभ्यता को प्रदान किया। प्रत्येक हिन्दू परिवार में बच्चे के जन्म में राम के नाम का सोहर होता है। वैवाहिक आदि सुअवसरों पर राम के गीत गाये जाते हैं। जीव के अंतिम समय में भी राम के नाम का घोष किया जाता है।
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मन्त्र सम्बन्धी कथा :-
लंका–विजय के बाद एक बार अयोध्या में भगवान श्रीराम देवर्षि नारद, विश्वामित्र, वशिष्ठ आदि ऋषि–मुनियों के साथ बैठे थे । उस समय नारदजी ने ऋषियों से कहा कि यह बताएं—‘नाम’ (भगवान का नाम) और ‘नामी’ (स्वयं भगवान) में श्रेष्ठ कौन है ?’
इस पर सभी ऋषियों में वाद–विवाद होने लगा किन्तु कोई भी इस प्रश्न का सही निर्णय नहीं कर पाया । तब नारदजी ने कहा—‘निश्चय ही ‘भगवान का ‘नाम’ श्रेष्ठ है और इसको सिद्ध भी किया जा सकता है ।’
इस बात को सिद्ध करने के लिए नारदजी ने एक युक्ति निकाली । उन्होंने हनुमान जी से कहा कि तुम दरबार में जाकर सभी ऋषि–मुनियों को प्रणाम करना किन्तु विश्वामित्रजी को प्रणाम मत करना क्योंकि वे राजर्षि (राजा से ऋषि बने) हैं, अत: वे अन्य ऋषियों के समान सम्मान के योग्य नहीं हैं ।’
हनुमानजी ने दरबार में जाकर नारदजी के बताए अनुसार ही किया । विश्वामित्रजी हनुमानजी के इस व्यवहार से रुष्ट हो गए। तब नारदजी विश्वामित्रजी के पास जाकर बोले—‘हनुमान कितना उद्दण्ड और घमण्डी हो गया है, आपको छोड़कर उसने सभी को प्रणाम किया ?’ यह सुन विश्वामित्रजी आगबबूला हो गए और श्रीराम के पास जाकर बोले—‘तुम्हारे सेवक हनुमान ने सभी ऋषियों के सामने मेरा घोर अपमान किया है, अत: कल सूर्यास्त से पहले उसे तुम्हारे हाथों मृत्युदण्ड मिलना चाहिए ।’
विश्वामित्रजी श्रीराम के गुरु थे अत: श्रीराम को उनकी आज्ञा का पालन करना ही था ।‘ श्रीराम हनुमान को कल मृत्युदण्ड देंगे’—यह बात सारे नगर में आग की तरह फैल गई । हनुमानजी नारदजी के पास जाकर बोले—‘देवर्षि ! मेरी रक्षा कीजिए, प्रभु कल मेरा वध कर देंगे । मैंने आपके कहने से ही यह सब किया है ।’
नारदजी ने हनुमानजी से कहा—‘तुम निराश मत होओ, मैं जैसा बताऊं, वैसा ही करो । ब्राह्ममुहुर्त में उठकर सरयू नदी में स्नान करो और फिर नदी–तट पर ही खड़े होकर ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’—इस मन्त्र का जप करते रहना । तुम्हें कुछ नहीं होगा ।’
दूसरे दिन प्रात:काल हनुमानजी की कठिन परीक्षा देखने के लिए अयोध्यावासियों की भीड़ जमा हो गई । हनुमानजी सूर्योदय से पहले ही सरयू में स्नान कर बालुका तट पर हाथ जोड़कर जोर–जोर से ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ का जप करने लगे ।
भगवान श्रीराम हनुमानजी से थोड़ी दूर पर खड़े होकर अपने प्रिय सेवक पर अनिच्छापूर्वक बाणों की बौछार करने लगे । पूरे दिन श्रीराम बाणों की वर्षा करते रहे, पर हनुमानजी का बाल–बांका भी नहीं हुआ । अंत में श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र उठाया । हनुमानजी पूर्ण आत्मसमर्पण किए हुए जोर–जोर से मुस्कराते हुए ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ का जप करते रहे । सभी लोग आश्चर्य में डूब गए ।
तब नारदजी विश्वामित्रजी के पास जाकर बोले—‘मुने ! आप अपने क्रोध को समाप्त कीजिए । श्रीराम थक चुके हैं, उन्हें हनुमान के वध की गुरु–आज्ञा से मुक्त कीजिए । आपने श्रीराम के ‘नाम’ की महत्ता को तो प्रत्यक्ष देख ही लिया है । विभिन्न प्रकार के बाण हनुमान का कुछ भी नहीं बिगाड़ सके। अब आप श्रीराम को हनुमान को ब्रह्मास्त्र से न मारने की आज्ञा दें।’
विश्वामित्रजी ने वैसा ही किया। हनुमानजी आकर श्रीराम के चरणों पर गिर पड़े। विश्वामित्रजी ने हनुमानजी को आशीर्वाद देकर उनकी श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति की प्रशंसा की।
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