ashtavakra gita

 

 

Previous    Menu    Next

 

द्वादश अध्याय | Twelveth chapter

 

 

जनक उवाच


कायकृत्यासहः पूर्वं ततो वाग्विस्तरासहः।
अथ चिन्तासहस्तस्माद् एवमेवाहमास्थितः॥१२.१॥

 

श्री जनक कहते हैंपहले मैं शारीरिक कर्मों से निरपेक्ष (उदासीन) हुआ, फिर वाणी से निरपेक्ष (उदासीन) हुआ  अब चिंता से निरपेक्ष (उदासीन) होकर अपने स्वरुप में स्थित हूँ ॥१॥

 

प्रीत्यभावेन शब्दादेरदृश्यत्वेन चात्मनः।
विक्षेपैकाग्रहृदय एवमेवाहमास्थितः॥१२.२॥

 

शब्द आदि विषयों में आसक्ति रहित होकर और आत्मा के दृष्टि का विषय होने के कारण मैं निश्चल और एकाग्र ह्रदय से अपने स्वरुप में स्थित हूँ ॥२॥

 

समाध्यासादिविक्षिप्तौ व्यवहारः समाधये।
एवं विलोक्य नियमं एवमेवाहमास्थितः॥१२.३॥

 

अध्यास (असत्य ज्ञान) आदि असामान्य स्थितियों और समाधि को एक नियम के समान देखते हुए मैं अपने स्वरुप में स्थित हूँ ॥३॥

 

हेयोपादेयविरहाद् एवं हर्षविषादयोः।
अभावादद्य हे ब्रह्मन्न् एवमेवाहमास्थितः॥१२.४॥

 

हे ब्रह्म को जानने वाले! त्याज्य (छोड़ने योग्य) और संग्रहणीय से दूर होकर और सुखदुःख के अभाव में मैं अपने स्वरुप में स्थित हूँ ॥४॥

 

आश्रमानाश्रमं ध्यानं चित्तस्वीकृतवर्जनं।
विकल्पं मम वीक्ष्यैतैरेवमेवाहमास्थितः॥१२.५॥

 

आश्रमअनाश्रम, ध्यान और मन द्वारा स्वीकृत और निषिद्ध नियमों को देख कर मैं अपने स्वरुप में स्थित हूँ ॥५॥

 

कर्मानुष्ठानमज्ञानाद् यथैवोपरमस्तथा।
बुध्वा सम्यगिदं तत्त्वं एवमेवाहमास्थितः॥१२.६॥

 

कर्मों के अनुष्ठान रूपी अज्ञान से निवृत्त होकर और तत्त्व को सम्यक रूप से जान कर मैं अपने स्वरुप में स्थित हूँ ॥६॥

 

अचिंत्यं चिंत्यमानोऽपि चिन्तारूपं भजत्यसौ।
त्यक्त्वा तद्भावनं तस्माद् एवमेवाहमास्थितः॥१२.७॥

 

अचिन्त्य के सम्बन्ध में विचार करते हुए भी विचार पर ही चिंतन किया जाता है। अतः उस विचार का भी परित्याग करके मैं अपने स्वरुप में स्थित हूँ॥७॥

 

एवमेव कृतं येन कृतार्थो भवेदसौ।
एवमेव स्वभावो यः कृतार्थो भवेदसौ॥१२.८॥

 

जो इस प्रकार से आचरण करता है वह कृतार्थ (मुक्त) हो जाता है; जिसका इस प्रकार का स्वभाव है वह कृतार्थ (मुक्त) हो जाता है ॥८॥

 

Next

 

 

By spiritual talks

Welcome to the spiritual platform to find your true self, to recognize your soul purpose, to discover your life path, to acquire your inner wisdom, to obtain your mental tranquility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!