भगवद गीता अध्याय 1 " अर्जुन विषाद योग "

 

 

Previous       Menu      Next

 

अध्याय-एक : अर्जुन विषाद योग 

28-47 अर्जुनका विषाद,भगवान के नामों की व्याख्या

 

Arjun Vishad Yog

तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्।

स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव ॥1.37॥

 

तस्मात्-अतः; न-कभी नहीं; अर्हाः-योग्य; वयम्-हम; हन्तुम्- मारने के लिए; धृतराष्ट्रान्–धृतराष्ट्र के पुत्रों को; स्व-बान्धवान् -मित्रों सहित; स्व-जनम्-कुटुम्बियों को; हि-निश्चय ही; कथम्-कैसे; हत्वा-मारकर; सुखिनः-सुखी; स्याम-हम होंगे; माधव-योगमाया के स्वामी, श्रीकृष्ण।

 

अतएव हे माधव! अपने ही बान्धव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने के लिए हम योग्य नहीं हैं क्योंकि अपने ही कुटुम्ब को मारकर हम कैसे सुखी होंगे?॥1.37॥

 

‘तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान् स्वबान्धवान्’ – अभी तक (1। 28 से लेकर यहाँतक) मैंने कुटुम्बियों को न मारने में जितनी युक्तियाँ , दलीलें दी हैं , जितने विचार प्रकट किये हैं उनके रहते हुए हम ऐसे अनर्थकारी कार्य में कैसे प्रवृत्त हो सकते हैं ? अपने बान्धव इन धृतराष्ट्र-सम्बन्धियों को मारने का कार्य हमारे लिये सर्वथा ही अयोग्य है , अनुचित है। हम जैसे अच्छे पुरुष ऐसा अनुचित कार्य कर ही कैसे सकते हैं ? ‘स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव ‘ – हे माधव ! इन कुटुम्बियों के मरने की आशंका से ही बड़ा दुःख हो रहा है , संताप हो रहा है तो फिर क्रोध तथा लोभ के वशीभूत होकर हम उनको मार दें तो कितना दुःख होगा । उनको मारकर हम कैसे सुखी होंगे ? यहाँ ये हमारे घनिष्ठ सम्बन्धी हैं । इस ममताजनित मोह के कारण अपने क्षत्रियोचित कर्तव्य की तरफ अर्जुन की दृष्टि ही नहीं जा रही है। कारण कि जहाँ मोह होता है वहाँ मनुष्य का विवेक दब जाता है। विवेक दबने से मोह की प्रबलता हो जाती है। मोह के प्रबल होने से अपने कर्तव्य का स्पष्ट भान नहीं होता। अब यहाँ यह शंका होती है कि जैसे तुम्हारे लिये दुर्योधन आदि स्वजन हैं । ऐसे ही दुर्योधन आदि के लिये भी तो तुम स्वजन हो। स्वजन की दृष्टि से तुम तो युद्ध से निवृत्त होने की बात सोच रहे हो पर दुर्योधन आदि युद्ध से निवृत्त होने की बात ही नहीं सोच रहे हैं । इसका क्या कारण है ? इसका उत्तर अर्जुन आगे के दो श्लोकों में देते हैं – स्वामी रामसुखदास जी 

 

Next Page

 

 

By spiritual talks

Welcome to the spiritual platform to find your true self, to recognize your soul purpose, to discover your life path, to acquire your inner wisdom, to obtain your mental tranquility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!