kabir ke dohe

 

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काजल केरी कोठढ़ी, तैसा यहु संसार।
बलिहारी ता दास की, पैसि रे निकसणहार॥

कबीर साहेब की वाणी है कि यह संसार काजल की कोठरी के समान है, सदृश्य है और इसमें माया का काजल चारों और बिखरा पड़ा है इसमें अछूता निकलना बड़ा ही मुश्किल है। गुरुदेव की कृपा स्वरुप भक्त जन ही इस कोठरी से अछूता निकल सकता है। भाव है कि यह संसार विषय वासनाओं से भरा पड़ा है जिससे निकलने के लिए इंसान को ईश्वर और गुरु कृपा का सहारा लेना पड़ेगा । इस संसार में प्रवेश करके साधक/इश्वर भक्त बिना किसी कलंक के बाहर निकल आता है। भाव है कि जैसे काजल की कोठरी में व्यक्ति को दाग लग ही जाते हैं, ऐसे ही इस संसार में व्यक्ति आकर माया के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाता है। यदि व्यक्ति ईश्वर के नाम का सहारा लेकर चलता है तो वह इस जगत के प्रभाव से अछूता रह सकता है।

 

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